प्रोड एवं विद्वानों से आग्रह - नव जवानो को केसे दिशा दें|
आजकल सामजिक सोशल ग्रुप्स पर बड़ी बहस छिड़ी हुई हे मजाक/ठिलवाई/समाज उन्नति/शेरोशयारी अच्छी हे नही हे/हिंदी में लिखे/विचार सुविचार /कुविचार/ आदि आदि| होना चाहिए /नहीं होना चाहिए | इसमें अधिकतर प्रोड एवं अधिक आयु के सदस्यों की ही टिप्पणिया अधिक हें | नवजवान कभी कभी कुछ अपनी आयु के मान से कुछ पोस्ट लिखते हे तो तुरंत उन्हें सलाह दी जाने लगती हे| यह ठीक हे यह ठीक नहीं आदि| इन सब बातो से में जब में स्वयं ही भृम से पीड़ित हो रहा हूँ तो हो रहा हूँ, तो नोजवानो का क्या हो रहा होगा? आखिर वे करें क्या ? सभी अपनी आयु/बोद्धिक ज्ञान/ उपलब्ध समय आदि कई बातों के आधार पर अपनी भावनाए व्यक्त करते हें | अपने सुख -दुःख/ हंसी-ख़ुशी /आदि को अपने तरीके से व्यक्त करते हें , और पीडी का गेप उसको अनुचित मान उपदेश देने लगता हे | क्या होगा इससे! यही न की वे, इससे और भी दूर हो जायेंगे , अभी किसी बहाने से हे सही हम से संपर्क में तो हें, यदि संपर्क बना रहे तो थोड़ी थोड़ी कडवी गोली(समाज/नेतिकता आदि) खिलाई जा सकती हे , पर यदि वे संपर्क में ही नहीं रहे तो इस ग्रुप को बना ने का उद्देश्य भी असफल हो जायेगा| जब सुनने वाला ही न होगा तो पाठ किसे पढ़ाएंगे ? माता-पिता आचार्य,वृद्धजन आदि जब पुत्र पुत्री,शिष्य ,युवाओं से दूर ही हो जायेंगे तो सूधार तो होने से रहा | क्या हमें कभी कभी , कुछ कुछ अनदेखा नहीं करना चाहिए? क्या हर समय नेतिकता का पाठ पड़ते ही रहना चाहिए? जिसे शायद हमने अपनी उसी युवा आयु में न तो पड़ा न अमल किया |
हो सकता हे मेरी बाते बुरी लग रही हों आप सहमत भी नहीं हों या आपके अहम् को ठेस पहुचती हो,या में आपकी सोच के विरुद्ध दिख रहा हूँ तो क्षमा सहित एक बार फिर सोचने हेतु लिख रहा हूँ| में एक चिकित्सक /मनो विश्लेषक के रूप में भी आपसे यह अनुरोध कर रहा हूँ| इस समूह में हर आयु वर्ग के सोच /विचार का अधिकार हे| हास्य व्यंग,सुख दुख ,करुणा/प्रेम/आश्चर्य/विभत्सता आदि सभी वीर रस - (normally found in war poetry or songs), वीभत्स रस - disgus . रौद्र रस - anger ,हास्य रस - comic and humor , भयानक रस - fright , करूँ रस - pity , अद्भुत रस - wonder , शांत रस - peace , वात्सल्य रस - parental love , भक्ति रस - devotional (normally found in devotional songs), इन सभी नो रसो का यथोचित समावेश क्यों नहीं किया जा सकता? आखिर हम सब मनुष्य हें और फिर हर वक्त भी तो एक नहीं हो सकता जेसे शादी के समय शोक गीत नहीं गाये जाते | कहने का अर्थ हे समाज के हर सदस्य की हर समय पर एक अपनी जिंदगी होती हे ,और उसे भी अधिकार हे की वह उसका उपयोग करे| यदि उस वक्त किसी दुसरे का मूड अलग हे तो क्या वह अपना मूड भी उसीके अनुसार बनाये? फिर उसको तो ज्ञात भी नहीं की दुसरे की उस समय केसी अवस्था हे |
जरुरी यह नहीं की क्या ठीक हे क्या नहीं, जरुरी यह हे की यदि कुछ गलत हे तो उसे केसे ठीक करें ? केवल आलोचना करने या गलतियाँ बताने और प्रतिबन्ध से काम नहीं चलेगा , उचित रस्ते पर गाड़ी चलाने के लिए उचित राह भी दिखानी होगी| अन्यथा हम अपने समाज सूधार के उद्देश्य में असफल हो सकते हें| युवा यदि भटक तो रहे हें तो क्या आप उन्हें यू ही भटकने देंगे|
निवेदन हे की सभी अच्छी बातो को अधिक प्रात्साहित करे,यदि कुछ खराब हे तो एक मीठी झिडकी दें , अपमान न करे न ही हतोत्साहित करें | आपकी विद्वता इसमें ही हे की आप किस प्रकार से गलत को भी सही बना कर दिखा सकते हें|
अस्तु |
आजकल सामजिक सोशल ग्रुप्स पर बड़ी बहस छिड़ी हुई हे मजाक/ठिलवाई/समाज उन्नति/शेरोशयारी अच्छी हे नही हे/हिंदी में लिखे/विचार सुविचार /कुविचार/ आदि आदि| होना चाहिए /नहीं होना चाहिए | इसमें अधिकतर प्रोड एवं अधिक आयु के सदस्यों की ही टिप्पणिया अधिक हें | नवजवान कभी कभी कुछ अपनी आयु के मान से कुछ पोस्ट लिखते हे तो तुरंत उन्हें सलाह दी जाने लगती हे| यह ठीक हे यह ठीक नहीं आदि| इन सब बातो से में जब में स्वयं ही भृम से पीड़ित हो रहा हूँ तो हो रहा हूँ, तो नोजवानो का क्या हो रहा होगा? आखिर वे करें क्या ? सभी अपनी आयु/बोद्धिक ज्ञान/ उपलब्ध समय आदि कई बातों के आधार पर अपनी भावनाए व्यक्त करते हें | अपने सुख -दुःख/ हंसी-ख़ुशी /आदि को अपने तरीके से व्यक्त करते हें , और पीडी का गेप उसको अनुचित मान उपदेश देने लगता हे | क्या होगा इससे! यही न की वे, इससे और भी दूर हो जायेंगे , अभी किसी बहाने से हे सही हम से संपर्क में तो हें, यदि संपर्क बना रहे तो थोड़ी थोड़ी कडवी गोली(समाज/नेतिकता आदि) खिलाई जा सकती हे , पर यदि वे संपर्क में ही नहीं रहे तो इस ग्रुप को बना ने का उद्देश्य भी असफल हो जायेगा| जब सुनने वाला ही न होगा तो पाठ किसे पढ़ाएंगे ? माता-पिता आचार्य,वृद्धजन आदि जब पुत्र पुत्री,शिष्य ,युवाओं से दूर ही हो जायेंगे तो सूधार तो होने से रहा | क्या हमें कभी कभी , कुछ कुछ अनदेखा नहीं करना चाहिए? क्या हर समय नेतिकता का पाठ पड़ते ही रहना चाहिए? जिसे शायद हमने अपनी उसी युवा आयु में न तो पड़ा न अमल किया |
हो सकता हे मेरी बाते बुरी लग रही हों आप सहमत भी नहीं हों या आपके अहम् को ठेस पहुचती हो,या में आपकी सोच के विरुद्ध दिख रहा हूँ तो क्षमा सहित एक बार फिर सोचने हेतु लिख रहा हूँ| में एक चिकित्सक /मनो विश्लेषक के रूप में भी आपसे यह अनुरोध कर रहा हूँ| इस समूह में हर आयु वर्ग के सोच /विचार का अधिकार हे| हास्य व्यंग,सुख दुख ,करुणा/प्रेम/आश्चर्य/विभत्सता आदि सभी वीर रस - (normally found in war poetry or songs), वीभत्स रस - disgus . रौद्र रस - anger ,हास्य रस - comic and humor , भयानक रस - fright , करूँ रस - pity , अद्भुत रस - wonder , शांत रस - peace , वात्सल्य रस - parental love , भक्ति रस - devotional (normally found in devotional songs), इन सभी नो रसो का यथोचित समावेश क्यों नहीं किया जा सकता? आखिर हम सब मनुष्य हें और फिर हर वक्त भी तो एक नहीं हो सकता जेसे शादी के समय शोक गीत नहीं गाये जाते | कहने का अर्थ हे समाज के हर सदस्य की हर समय पर एक अपनी जिंदगी होती हे ,और उसे भी अधिकार हे की वह उसका उपयोग करे| यदि उस वक्त किसी दुसरे का मूड अलग हे तो क्या वह अपना मूड भी उसीके अनुसार बनाये? फिर उसको तो ज्ञात भी नहीं की दुसरे की उस समय केसी अवस्था हे |
जरुरी यह नहीं की क्या ठीक हे क्या नहीं, जरुरी यह हे की यदि कुछ गलत हे तो उसे केसे ठीक करें ? केवल आलोचना करने या गलतियाँ बताने और प्रतिबन्ध से काम नहीं चलेगा , उचित रस्ते पर गाड़ी चलाने के लिए उचित राह भी दिखानी होगी| अन्यथा हम अपने समाज सूधार के उद्देश्य में असफल हो सकते हें| युवा यदि भटक तो रहे हें तो क्या आप उन्हें यू ही भटकने देंगे|
निवेदन हे की सभी अच्छी बातो को अधिक प्रात्साहित करे,यदि कुछ खराब हे तो एक मीठी झिडकी दें , अपमान न करे न ही हतोत्साहित करें | आपकी विद्वता इसमें ही हे की आप किस प्रकार से गलत को भी सही बना कर दिखा सकते हें|
अस्तु |
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