संस्कारवान संतान केसे पाए?

हम प्रति दिन प्रात बुजुर्गो को प्रणाम करने की आदत बनाये,
उन्हें सम्मान दें| नियमित दिन चर्या बनाये जिसे अनुकरण कर
हमारा बेटा पोता नाती भी सभी और संस्कारिक हो जाये | 
 संस्कारवान संतान केसे पाए?

मातृमान पित्रमानाचार्यवान् पुरुषो वेद| (शत पथ ब्राम्हण)
 अर्थात जब् तीन (माता,पिता ,ओर आचार्य) उत्तम होते हे , तभी कुल धन्य होता हे|
इस वाक्य से प्रयोजन हे  उत्तम संतान का होना| जिसके माता पिता विद्वान होते हें और आचार्य भी विद्वान मिल जाये तो वह संतान भाग्यवान होती हे | विदुषी माता पिता से उसको संस्कारो की शिक्षा अनायास ही मिलती रहती हे| फिर जब वह विद्वान गुरु से शिक्षा प्राप्त करता हे तब वह संतान अपने कुल का गोरवान्वित कर देती हे|  इतिहास इस प्रकार के विद्वानों की कथाओ से भरा पड़ा हे|
    इसका प्रारम्भ कहाँ  से हो ? में प्रारंभ  की बात यहाँ इसलिए कर रहा हूँ की वर्तमान में समाज में जो अवनति हो रही हे चाहे उसका दोष हम भारत के पिछली कई सदियों की गुलामी को दें या कुछ भी और तर्क देंयह सही हे की हमने अपना गोरव खोया हे| हम सही मायने में ब्राम्हण नहीं रह गए हें| हमको अपना गोरव प्राप्त करना हे, तो पुन; इन शास्त्रगत सूत्रों को समझना होगा| और एक बार फिर  'प्रारभ' करना होगा |
सुसंतान को उत्पन्न करने वाली विदुषी माँ चाहिए, विद्वान पथप्रदर्शक पिता चाहिए, और श्रेष्ट शिक्षा दे सके एसा गुरु चाहिए , तो शुरवात माँ से करनी होगी| में यहाँ  अपनी माँ को विदुषी बनाने की बात नहीं कर रहा हूँ, में कर रहा हूँ नव सुसंतान को पाने के लिए अपने पुत्र के लिए संस्कारित वधु लाने की, या अपनी पुत्री के लिए विद्वान संस्कारित वर पाने की जो भविष्य में सुसंतान को जन्म देकर  भविष्य निश्चित करेगी|
           वर्तमान में हम जब भी वर या वधु तलाशने जाते हें तो क्या पूछते हें?


कभी भी कोई यह क्यों नहीं पूछता की संस्कार केसे हें|
प्रात जल्दी उठकर बड़ो को प्रणाम करती/करता हे या नहीं?
दूसरों के साथ उसके सम्बन्ध केसे हें दीन, दुखी, गरीब,
साथियों की मदद के बारे में क्या विचार हें?कभी यह जानने
की कोशिस भी की या नहीं की , पडोसी/साथी आदि उन्हें
किस हद तक पसंद करते हें?या कोई पसंद नहीं करता?
 आपकी पुत्री / पुत्र की उचाई क्या हे? शरीर केसा हे? मोटी या पतली?कितना कमाता / कमाती  हे?जेसे कोई गाय बकरी की तलाश हो ताकि दूध अधिक मिल सके| 
      कभी भी कोई यह क्यों नहीं पूछता की संस्कार केसे हें|
 प्रात जल्दी उठकर बड़ो को प्रणाम करती/करता हे या  नहीं?दूसरों के साथ उसके सम्बन्ध केसे हें दीन, दुखी, गरीब, साथियों की मदद के बारे में क्या विचार हें?कभी यह जानने की कोशिस भी की या नहीं की , पडोसी/साथी आदि उन्हें किस हद तक पसंद करते हें?या कोई पसंद नहीं करता?आदि आदि|
 जब भी कोई संस्कारो की बात करता हे तो सामन्यतय पूजा पाठ, धार्मिक प्रक्रिया,का ज्ञान गीता भगवत,रामायण के ज्ञान आदि के बारे में ही सोचा जाता हे| क्या यही संस्कार होते हें ? वास्तव में तो ये सब ग्रथ संस्कारो को सिखाते  तो हें पर उनका ज्ञान होने भर  से ही संस्कार नहीं  आ जाते|  उनको जीवन में कितना उतारा हे यह जानना ही जरुरी हे इसके लिए वर्तमान में इन ग्रंथो का पड़ना पढाना ही क्या जरुरी हे| 
बात यही तक समाप्त नहीं होती अगला क्रम कुंडली मिलाने की और चल पड़ता हे|
 क्या  कुंडली संस्कारो का पता बता सकती हे? कितने लोग हें जो जानते हें की वास्तव में कुंडली से क्या समझा जा सकता हे, सच तो यह हे की यह मात्र आजीविका का साधन मात्र हें जो हमने धन पाने के लिए पकड रखा हे और चूँकि हम ब्राम्हणों की यह रोजी हे तो दुसरो को इसे अनावश्यक  केसे बता दें| और अनजान बाकि सब इसे बस एक परंपरागत रूडी की तरह से  को पकड़कर बेठे हें| जिसे जन्म के समय अंदाजे से बना दिया गया हो जिसे पड़ कर ज्योतिषी जी ने कहा हो "इसके जन्म गृह बड़े अच्छे  हें,मित्र गृह भी  अच्छे  हें,जिनका फल अच्छा होगा, जातक धनाड्य होगा,सभा पर राज करेगा,आदि श्रोता मातापिता वाह-वाह करते हें तो ज्योतिषी जी बोलते हें,पर इन बातो से कार्य सिद्ध  नहीं होगा, गृह तो अच्छे हें पर क्रूर हें शांति करना होगी| आगे महाराज कहते हें एसा दान करो जप करवाओ ,अनुमान भाग्य प्रबल होंगे तो क्रूर गृह हट  जायेंगे!और मृत्यु  आदि योग हट जायेगा! यदि कष्ट मिट गया तो वाह नहीं तो भाग्य खराब था, फिर जब भाग्य ही था तो इतना कर्मकांड करवा कर धन और समय नष्ट क्यों किया?(महर्षि दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश से ) 
पूर्व  गुलामी के दिनों में जब हम अपनी वैदिक विरासत को भूल कर विदेशी सभ्यता  को अपनाकर तात्कालिक लाभ लेने के प्रयत्न में  में जब  संस्कार हीन जीवन में प्रसन्नता तलाश रहे  थे तब हम इन्हें विस्मृत न कर बेठे तब हमारे वुजुर्गों ने इनपूर्व  गुलामी के दिनों में जब हम अपनी वैदिक विरासत को भूल कर विदेशी सभ्यता  को अपनाकर तात्कालिक लाभ लेने के प्रयत्न में  में जब  संस्कार हीन जीवन में प्रसन्नता तलाश रहे  थे तब हम इन्हें विस्मृत न कर बेठे तब हमारे वुजुर्गों ने इन रामचरित्र मानस /भगवद पुराण आदि  ग्रंथो के माध्यम से संस्कारो को भूलने नहीं दिया, बिना गुरुकुल.आचार्य के इन ग्रथो ने श्रेष्ट शिक्षा व्यवस्था बनाये रखी |  (स्मरण रहे की ये सभी ग्रन्थ इस गुलामी के इस अंध-काल में ही लिखे या परिष्कृत पुनर्लिखित किये गए गये थे)
      वर्तमान में आज हम पुनह स्वतंत्र हें और हम सक्षम भी हें की अतीत के गोरव को वापिस लायें |  जब आज संस्क्रर्ती  की सही और पूर्ण परिभाषा जानने में समर्थ हे तब क्यों हम उसको नहीं अपनाये? 
  संस्कारो के बारे में जानने के लिए क्यों न व्यवहारिक बातो की और गोर करे | यदि हम आज भी वर या बधू पक्ष की आय/ धन/ रंग रूप आदि के बारे में सोचते रहेंगे तो क्या संस्कारित पुत्र वधु ला पाएंगे जो संस्कारवान पुत्र पुत्रियों की माँ बने और अपने कुल का गोरव बडाये , सभी जन गर्व से कहें की यह फलाने का पुत्र पोता हे जब यह इतना संस्कारवान,विद्वान हे तो इसके दादाजी पिताजी और पुरखे श्रेष्ट तो होंगे ही| तब क्या  आत्मसम्मान गोरव से सर तन नहीं जायेगा| 
 धनवान कुसंस्कारित पुत्र पुत्रियों के के पिता/दादा नाना कहलाना किसे अच्छा लगेगा? आज एसे भी  कई उदाहरण हें जिनमें अपनी संतानों का नाम लेने में भी सो बार सोचना पड़ता हे और कोई यह कह दे की ये फलां फला के दादा/पिता हें तो शर्म से सर क्या नहीं झुक जाता? 
विचार करें की यदि संस्कार के बीज सही समय पर बोये होते,हमने अपने माता-पिता वुजुर्गों का सम्मान किया  होता, अपनी लालची प्रवृति पर अंकुश लगाया होता, तात्कालिक लाभ पाने के लिए अनुचित कार्य न किया होता आदि, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता | अभी भी समय हे यदि हम आज को सुधार लेंगे तो क़ल अपने आप सुधर जायेगा |  हम शुरवात अपने से ही क्यों न करे| आज से ही सही हम प्रति दिन प्रात बुजुर्गो को प्रणाम करने की आदत बनाये,उन्हें सम्मान दें| नियमित दिन चर्या बनाये जिसे अनुकरण कर हमारा बेटा पोता नाती भी सभी और संस्कारिक हो जाये | ये छोटी छोटी  बातें ही सही लेकिन इनका असर दीर्घकालीन और स्थाई होता हे| यह ही संस्कारो की पहली सीडी हे| इसमें इन सभी दुष्परिणाम देने वाली प्रक्रियाओ को उलट संस्कारवान बनने बनाने का संकल्प ले | यदि संस्कारित बहु/  दामाद पाना  हें जो संस्कारवान पीडी के लिए जरुरी हे, तो व्यापारी न बने| व्यापारी धन तो पा सकता हे, संस्कारवान संतान नहीं|  संस्कार नहीं मिला  तो ब्रम्हाण केसे कहला पायेगे| कब तक ब्राम्हण पिता से उत्पन्न हें यह कह कर ब्राम्हण प्रमाणित करते रहेंगे| हमको सब हमारे  कर्मो से ब्राम्हण कहें, न की हमें स्वयं को ब्राम्हण बोल कर ब्राम्हण  प्रमाणित करना पड़ता रहेगा | जिसके  अंत में संभव हे ब्राम्हण कहलाने का हक़ भी न रह जाये | 
अस्तु | 
डॉ मधु सूदन व्यास  एम् आई जी ४/१ प्रगति नगर उज्जैन म.प्र. 
09426379102
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