आज का मनुष्य धनबल और बाहुबल को सर्वश्रेष्ठ मानकर इनकी व्रध्दि करने में दिन रात एक कर रहा है। इस कारण उसका संपर्क अन्य विधाओं से कटता जा रहा है और वह अहंकार, ईर्षा, स्वार्थ और कपट के कपाट में बंद होकर श्रीहीन हो रहा है । यदि मानव इन बलों को छोडकर विध्या बल को बढाने में अपने को लगाए तो वह पंच तत्वों को अपनी आज्ञा में करते हुए प्रभावी बन सकता है क्योंकि संसार का व्यवहार विध्या के बल पर ही चल रहा है जिसके पास ज्ञान का बल है वहीं मनुष्य है । कहा गया है विध्या रहित मनुष्य पशु है ।
मनुष्य के पास बुध्दि है ,जिसका जितना अधिक उपयोग किया जाता है वह उतनी ही अधिक धारदार होती रहती है। संसार में बडे बडे साम्राज्यों की स्थापना और विनाश बुध्दि बल के आधार पर ही होता रहा है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए बुध्दि की आवश्यकता होती है । भगवान श्रीक्रष्ण ने गीता में कहा है कि इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र वस्तु नहीं है। ज्ञान आत्मा का सच्चा गुण है।
गरूड पुराण में लिखा है कि -
माता शत्रु पिता बैरी येन बालो न पठित, न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये वको यथा ।
हितोपदेश में लिख है कि -
विध्या से विनय ,विनय से पात्रता,पात्रता से धन ,धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है।
विध्या प्राप्ति के लिए और भी सुन्दर उदाहरण दिया गया है .
उत्तम विध्या लीजिए तदपि नीच पे होय ,पडो अपावन ठौर के कंचन तजत न कोय ।
ज्ञान एक महाशक्ति है । यदि आत्मा से ज्ञान को निकाल दिया जाय तो आत्मा जड बन जायगी । ज्ञान ही सभी शक्तियों का मूल है। संसार में ज्ञान का भण्डार भरा हुआ है और जीवन बहुत छोटा है । सारा ज्ञान अपने जीवन काल में प्राप्त करना कठिन है । ऐसी स्थिति में हंस के समान सार वाले ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिसके व्दारा वह शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति करते हुए अपना जीवन सुख पूर्वक बीता सके। अज्ञान के तिमिर को ज्ञान के सूर्य से मिटाकर अपने व्यक्तित्व को संवारिये । आचार,व्यवहार,सदाचार सब ज्ञान के प्रभाव और बुध्दि के विकास से ही प्राप्त होता है । अत ज्ञाप पिपासु बन कर जहां और जैसे भी लोक व्यवहार ,कला कौशल विज्ञान आदि का ज्ञान मिले उसको प्राप्त करने में अपने अमूल्य समय को लगाना चाहिए ।
उद्धव जोशी
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