मुख मन का दर्पण है, चेहरा मन का सांचा है, नेत्र आत्मा के वातायन माने जाते है।
विश्व का विधाता विचार है। चित्त को सदा तरूण बनाये रखना चाहिए।
विवेकी मनुष्य सदा सतर्क, सजग और सावधान रहता है।
भगवान बुध्द ने कहा है कि हम अपने विचारों से ही बने हैं, सुझाव में ही उपचार है।
भाग्य पर निर्भर रहने से अकर्मण्यता और आलस्य की वृध्दि होती है।
सभी क्षमतायें, सारी शक्तियां और सारे सामर्थ्य हमारे अन्दर ही हैं।मनुष्य विचार का बीज बोता है, और क्रति रूपी फल पाता है।
मनोबल प्राप्त करने का सर्वोत्क्रष्ट उपाय उन्नत, उदार और सद विचारों का चिन्तन है।
विचार चरित्र निर्माण की ईंटे है।
पवित्र विचार एक वाणी है।
द्रढ निश्चय की शक्ति का विकास कीजिए।
सभी असत्य विचार रोग के संदेश वाहक है, मृत्यु के अग्रदूत हैं।
हमें सदा प्रसन्न और सन्तुष्ट रहना चाहिए।
एक मनुष्य को आदर्श दूसरे के अनुरूप नहीं होता है।
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