राजेश भंडारी “बाबु”
१०४ महावीर नगर इंदौर ९००९५०२७३४
मालवा में बसंत ऋतु की शुरुवात में होली को तेवार मनायो जावे हे | होली का एक महीना पेला डंडा रोपनी पूनम पे एक डाँडो गाडे हे, ने ठीक एक महीना बाद होली बनानो को रिवाजह हे| होली पे पेला जिना सामान
से होली बनाई जाती थी उ सामान उपयोग में नि ऑतो थो उके होली में जलायो जातो थो यो रिवाज थो के मोहल्ला, गाव का लोग कंडा, लकडी, टूटी फूटी खाटला, खेती बाडी का सामान, जिमें कस्लो नाम की घास होती थी (जीके ढोर नि खावे हे )मतलब सग्लो एसो सामान जीको कोई उपयोग नि होवे, ने साफ सफाई हुई जावे, ली के होली पे जलाता था| कोई भी काम कि चीज के होली में नि जलाई जाति थी | लोग स्वेछा से केता था के हमारा या से सामान ली जाजो| फिर सबला लोग गाव का पटेल का साथै जय के होली जलावे हे | गाव को पटेल पूरा गाव को मुखिया होवे हे ने सब लोग उनकी बात बिना बहस के माने हे| होली हमेशा तलाव की पाल पे बनाई जावे ताकि आग लगने को खतरों नि होवे|
होली टेसू का फूल के २ दन पेला से पानी में उबाली के ठंडो करी के रखे फिर उससे ने गुलाल से होली खेली जावे हे | होली पे सब अपना बड़ा होन के गुलाल लगई के आशीर्वाद लेवे हे| पवित्र भावना से देवर भाभी जैसा रिश्ता को अपनों महत्व ह | होली पे दुःख सुख दोई को ध्यान राख्यो जावे हे| जितरी होली खुशी और मस्ती में मानाइ जावे उतरो ज ध्यान मोत और दुःख को भी राख्यो जावे हे| पूरा साल में जीतरा भी घरे मोत हुई हो उनका घरे गाव का लोग जय के रंग डाले ने उनका दुःख में हिस्सेदारी दर्ज करावे हे| या तक की जिका घरे मोत हुई हो उनका घर को भोजन भी रिश्तेदार और बस्ती का लोग बनान्वे हे |
होली में गहू की बाली को सेकी के खाने से पुरा साल दात में दर्द नि होवे हे| होली में सबेरे जल्दी उठी के पटेल ने सगला गाव का लोग होली तापने जावे | होली पे मालवा में बेसन की चक्की बनाने को भी रिवाज हे| छोरा छोरी होन कंडा का बुल्बुइया होली में से निकली के लावे ने अखा साल जदे भी दात दुखे तो उससे मंजन करने से ठीक हुई जावे|
होली का बाद आठ दन तक रोज सांजे लोग भेला हुई के फाग गावे हे| होली गीत को अपनों महत्व हे इमे देवी देवता और आपसी रिश्ता होन पे गीत गया जावे | इमे मुख्य रूप से जो गीत गया जावे हे वि हे ;-
होली पे हार कंगनी खरीदने को रिवाज भी हे | मालवो ज एसी जगा हे जा होली का बाद ५ दन तक होली ने फाग उस्त्सव चले हे | होली से रंग पंचमी तक फाग उस्त्सव चले हे ने रंग पंचमी का दन होली से भी जादा बड़ी होली मालवा का क़स्बा ने शहर होन में होवे हे यो केवे हे के होली तो गाव ,मोहल्ला की ने रंग पंचमी सेर की |
मालवा की होली .....
जय हो
से होली बनाई जाती थी उ सामान उपयोग में नि ऑतो थो उके होली में जलायो जातो थो यो रिवाज थो के मोहल्ला, गाव का लोग कंडा, लकडी, टूटी फूटी खाटला, खेती बाडी का सामान, जिमें कस्लो नाम की घास होती थी (जीके ढोर नि खावे हे )मतलब सग्लो एसो सामान जीको कोई उपयोग नि होवे, ने साफ सफाई हुई जावे, ली के होली पे जलाता था| कोई भी काम कि चीज के होली में नि जलाई जाति थी | लोग स्वेछा से केता था के हमारा या से सामान ली जाजो| फिर सबला लोग गाव का पटेल का साथै जय के होली जलावे हे | गाव को पटेल पूरा गाव को मुखिया होवे हे ने सब लोग उनकी बात बिना बहस के माने हे| होली हमेशा तलाव की पाल पे बनाई जावे ताकि आग लगने को खतरों नि होवे|
होली टेसू का फूल के २ दन पेला से पानी में उबाली के ठंडो करी के रखे फिर उससे ने गुलाल से होली खेली जावे हे | होली पे सब अपना बड़ा होन के गुलाल लगई के आशीर्वाद लेवे हे| पवित्र भावना से देवर भाभी जैसा रिश्ता को अपनों महत्व ह | होली पे दुःख सुख दोई को ध्यान राख्यो जावे हे| जितरी होली खुशी और मस्ती में मानाइ जावे उतरो ज ध्यान मोत और दुःख को भी राख्यो जावे हे| पूरा साल में जीतरा भी घरे मोत हुई हो उनका घरे गाव का लोग जय के रंग डाले ने उनका दुःख में हिस्सेदारी दर्ज करावे हे| या तक की जिका घरे मोत हुई हो उनका घर को भोजन भी रिश्तेदार और बस्ती का लोग बनान्वे हे |
होली में गहू की बाली को सेकी के खाने से पुरा साल दात में दर्द नि होवे हे| होली में सबेरे जल्दी उठी के पटेल ने सगला गाव का लोग होली तापने जावे | होली पे मालवा में बेसन की चक्की बनाने को भी रिवाज हे| छोरा छोरी होन कंडा का बुल्बुइया होली में से निकली के लावे ने अखा साल जदे भी दात दुखे तो उससे मंजन करने से ठीक हुई जावे|
होली का बाद आठ दन तक रोज सांजे लोग भेला हुई के फाग गावे हे| होली गीत को अपनों महत्व हे इमे देवी देवता और आपसी रिश्ता होन पे गीत गया जावे | इमे मुख्य रूप से जो गीत गया जावे हे वि हे ;-
गोरा थारो भाग बड़ा शिवशंकर खेले होली ......,होली खेलत हे नन्दलाल .......जमना जल भरन चली रे गुजरी जमना जल ....म्हारी बाई सा होली खेलना आई जि ......होली दिवाली दुई बहना ...रंग गुलाल घना खेलो रे होली , दे दो चिर मुरारी अजी कान्हा हम जल माहि उघारी |
होली पे मालवा में बहुत सी जगे कुश्ती भी होय हे जिमें पहलवाल लोग अपनी पेल्वानी बतावे हे इनाम जीते हे | चूल भी धुलेडी का दन फिरवा को रिवाज हे | होली पे हार कंगनी खरीदने को रिवाज भी हे | मालवो ज एसी जगा हे जा होली का बाद ५ दन तक होली ने फाग उस्त्सव चले हे | होली से रंग पंचमी तक फाग उस्त्सव चले हे ने रंग पंचमी का दन होली से भी जादा बड़ी होली मालवा का क़स्बा ने शहर होन में होवे हे यो केवे हे के होली तो गाव ,मोहल्ला की ने रंग पंचमी सेर की |
मालवा की होली .....
जय हो
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