सामाजिक अपराध की समीक्षात्मक विवेचना

श्री विश्वनाथ यजुर्वेदी 
पूर्व अध्यक्ष म.प्र आद्योगिक न्यायालय
एवं चेयरमेन म.प्र. आद्योगिक न्यायाधिकरण
इंदौर.

 पूर्व म. प्र. स्टेट बार कोंसिल का सदस्य/ 
 पूर्व प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोवेशन ट्रिबुनल 

का सदस्य| (आदि अनेक पद पर कार्यरत रहे।)
लेखन कार्य (२००९ के बाद )
 भारतीय वांगमय में सामाजिक न्याय की 
अवधारणा के परिपेक्ष में भारतीय संबिधान
जुलाई २००९ में - "अखंड भारत एक विवेचना" 
,सितम्बर २००९में, "इतिहास के झरोखों से", 
पूर्वांचल (नेफा)के परिपेक्ष में "चीन कल आज 
और कल" नव.२००९ में"शासकीय व्यवस्था से
 निर्वाचन के प्रत्याशियों के प्रचार व्यय " 
भोपाल से प्रकाशित "स्वयंसेवक" मासिक
 पत्रिका में प्रकाशित हुए हें।
 एक और आलेख "भारतीय करण के सन्दर्भ में"
लेखबद्ध हुआ हे।"नई दुनिया" समाचार पत्र में लेख 
"डगमगा रहा हे न्याय के प्रति आस्था का भाव" 
/"अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन में भारत की भूमिका"  
आदि आदि ।
सामाजिक अपराध की समीक्षात्मक विवेचना
श्री विश्वनाथ यजुर्वेदी 
घाटी  मोहोल्ला मनासा  जिला नीमच  म.प्र .

  जोन मार्तिमर के "क्वाईट ओनेस्टली" में विशिष्ट मनोवेग के उन्माद के कारण से आपराधिक दुष्कृत्य घटित होना ही, नायक टेरिकिगन की मान्यता हे | आपराधिक वृत्ति के इस प्रेरक मनोवेग को समझने के लिये, "नायिका ' लूसी' प्रयोग धर्मी सुधारक के नाते सजा पूर्ण कर जेल से निकल रहे 'टेरिकिगन' की सुधारक(प्रीसेप्टर) सहयोगी बन कर उसे आपराधिक वृति से दूर रखने के लिये , किये गए प्रभावी प्रयास में, वह स्वयं अपराधी की भूमिका में लिप्त हो गई| यह कथानक एक व्यक्ति की अपराधिक मानसिकता पर केन्द्रित है |
  जबकि समाज में व्याप्त कुरीतियों,गरीबी ,एवं द्विविध शारीरिक एवं अन्यथा शोषण से आहत होकर आतताइयों को कलंकित करने की स्थिति निर्मित कर आर्थिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा से दुष्कृत्य करने की प्रवृत्तियों का प्राकट्य समाज व्यापी अपराधिक मानसिकता का द्योतक है। 
  सामजिक कुरीतियों में घटित अपराधो में, दहेज़ की जड़ें गहरी हें| सामान्य रूप से संस्कार के रूप में सम्पादित होने वाले विवाह के आयोजन ने अब अनुबंध का रूप ग्रहण कर लिया हे| जिसके परिणाम स्वरूप कन्या- वधु के लिये योग्य वर ढूढने में ही उत्त्पन्न होती कठिनाई का प्रारम्भ होकर ढूढने पर, कन्या वधु की योग्यता- विशेषताएं, तो सक्षम युवक वर के लिये की जाने वाली चर्चा में गोण रहकर दोयम स्थिति पर रहतीहै| प्रथम स्थिति तो जिसका आकलन होता हे वह तो यदि युवक वर पक्ष योग्य संस्कारो से शून्य हो तो भी उसके प्रति कन्या वधु पक्ष का विवाह आयोजन के पूर्व एवं समय पर होने वाली समर्पण सीमाहै| यह उच्च स्तरीय संम्पन्नता,वैभव,के प्रदर्शन की मानसिकता के प्राकट्य के कारण प्रकट हो रहे अपराधों का एक पहलु है | कन्या -वधु पक्ष के लिये तो यही विचारणीय रहता हे की लोग भले ही अव्यावहारिक, अतार्किक,एवं स्वकेंद्रित स्वार्थी हों, तो भी चाहे जो हो फिर भी उन्हें प्रेम दें, सम्मान दें| 
  यह जानते हुए कि आज किया जाने वाला समर्पण कल भुला दिया जायेगा फिर भी किसी भी स्थिति में स्वीकार कर अच्छा किया ही जाना चाहिए।
यह जानते हुए की अपनी क्षमता के पार जाकर प्रकट अच्छाइयों के उपरांत भी परिणाम में तिरस्कृत होना ही हे,फिर भी श्रेष्ठता एवं गंभीरता प्रकट करना ही वान्छनीय है| 
   इन विचारों को आत्मसात करने के कारण एवं श्री गणेशजी के आव्हान के परिणाम स्वरूप यदि विवाह आयोजन निर्विघ्न संपन्न हो गया तो, वर पक्ष के लोभ लालच के उमड़ते ज्वार से वधु कन्या की त्रासदी उसे आत्म सम्मान के रक्षण के लिये कभी पंखे के नीचे लटकते या लटकाते हुए, और कभी शरीर पर केरोसिन डालकर जलते और कभी जलाते हुए, और कभी घर के दरवाजे के बाहर निकाली हुई, भी प्रकट होती है| ऐसे       उदाहरणौ की कमी नहीं हे | समाचार पत्रों के प्रष्टो पर नियमित पड़ा जा सकता है | 
उक्त प्रकार की एवं अन्य दूषित संकीणॆता लिये मनोवृति जाति समाजों की परिधि के संकुचन के लिये भी उत्तरदाई बन कर भ्रूण हत्याओं जेसे आपराधिक कृत्यों की जननी भी है| 
     उक्त स्थितियों को चुनोती के साथ स्वीकार करने का साहस यदि कन्या अथवा युवक ने प्रदर्शित किया तो उन्हें ,परिवार जति समाज के उपबंधो को लांघने को प्रस्तुत होना पड़ेगा एवं परिणाम में परिवार,एवं समाज की मान्यता एवं प्रतिष्टा के संरक्षण के नाम के लिये जाति समाज की पंचायत यदि है, तो उसके क्रूर निर्णय से लांछित होना ही नहीं तो हारोअर किलिंग के पात्र भी बनना पड़ेगा| इन सभी एवं अन्य छद्म स्थितियों के द्रष्टातों से कोई जाति समाज अछूता नहीं है एवं उनके उल्लेखों की कोई सीमा भी नहीं है।
    यह है सामाजिक कुरीति, अनुबंधित तथा तात्कालिक मांग की पूर्ति कर बे मेल विवाह आयोजित होने पर उत्पन्न दुष्परिणाम से उत्पन्न दहेज़ की विभीषिका के एवं विपन्नता - सम्पन्नता की खाई के तथा अव्यवहारिक विकृत मानसिकता के परिणामस्वरूप नियमित रूप से घटित हो रही अपराध वृति का दिग्दर्शन -  इस अपराध वृत्ति को नियंत्रित करने के लिए वैधानिक दंडात्मक व्यवस्था भी सृजित है, फिर भी इस अपराध वृति को व्यक्ति केन्द्रित न समझते हुए, सामाजिक होना स्वीकार कर , सामाजिक स्तर पर उदघाटित, ऐसी अनुबंधित वृत्ति के पुरुस्कर्ता को घोषित रूप से तिरस्कृत करने के लिए उसके आयोजनों से दूरी तो बनाई जा सकती है।
   दहेज़ प्रताड़ना की उक्त एवं छद्म स्थितियों के विपरीत अपवाद स्वरुप ही क्यों नहीं हो, परन्तु अपनी छवि को कलंक से बचाने के लिए काल्पनिक एवं असत्य आधारों पर  वैधानिक  दंडात्मक व्यवस्था का अवलंबन करके कन्या-वधु पक्ष के द्वारा भी निरपराध पक्ष को प्रताड़ित एवं कलंकित करने के लिए वैधानिक प्रावधानों का दुरूपयोग भी किया जा रहा है। इस स्थिति को सर्वोच्च न्यायालय ने कई प्रकरणों में रेखांकित भी किया है। किन्तु जाति पंचायतों के क्रूर निर्णय के परिणाम स्वरुप हो रहे हारोअर किलिंग जेसे आपराधिक दुष्क्रत्यों के विरुद्ध तो कठोर निर्णयों की आवश्यकता को स्वीकार किया है। 
   अत: सामाजिक सोच को भी समयानुकूल परिष्कृत होना चाहिए ।
   अशिक्षा एवं गरीबी को प्रकट करने वाले झुग्गी-झोपड़ी निवासी,फुटपाथ और रेलवे स्टेशनों,बस स्टेंड एवं सिनेमा घरों के निकट घूम रहे वे अपराधी हें जो अपने दैनिक जीवन यापन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चिंतित हें एवं जिन्हें कोई सामाजिक सहारा भी उपलब्ध नहीं है एवं इस कारण अपराधी की भूमिका का उनके सामने कोई सार्थक विकल्प नहीं है। किन्तु समाज में ऐसे भी कई परिवार हें जो अत्यधिक सामान्य स्थिति में जेसे तेसे जीवन यापन कर रहे है ।
  अत: अशिक्षा के कलंक को समाप्त करने एवं गरीबी से जूझ रहे समाज के प्रत्येक वर्ग को संबल तथा सहारा उपलब्ध हो यह निरहंकारी सामाजिक सोच की प्रगाढता सम्मान जनक समाज के निर्माण में सहायक होने वाले विषय के प्रति समाज व्यापी समरसता का भाव एवं संवेदन शीलता जाग्रत करने में पूर्वजों द्वारा प्रकट पुरातन सामाजिक व्यवस्था का सम्मान कर समर्थो द्वारा आहूति दी जानी चाहिये।
   अल्प शिक्षा एवं गरीबी से पीड़ित एक वर्ग और है जो पुरुषार्थ प्रकट कर मेहनत मजदूरी कर अपनी आजीविका यापन करता है। ऐसे वर्ग के सम्मुख समाज में प्रदर्शित होती उच्च स्तरीय सम्पन्नता एवं वैभव प्रदर्शन की मानसिकता का जो परिद्रश्य परिद्रश्य प्रकट होता है , वह इस एवं शेष समाज को किसी मात्रा तक अवश्य प्रभावित करता है । परिणाम स्वरूप ऐसे गरीब वर्ग के पुरुष एवं महिलाएं भी येनकेन प्रकारेण लाभान्वित होने के लिए अशोभनीय अपराधिक कृत्यों की संलिप्तता से वंचित नहीं है। ऐसे वर्ग की महिलाये संपन्न परिवारों के साथ संपर्क में घरेलू नोकरानी नाते परिवारों की उपलब्ध स्थितियों से परिचित रहने से अवसर प्राप्त होते ही न केवल हाथ की सफाई के अपराध करती हें, अपितु ऐसी लताएँ सहारे से विभूषित होने के लिए छोटे बड़े वृक्षों पर अमरबेल बनकर छा जाने के प्रयास से भी नहीं चूकती हें। एवं ऐसे प्रयासों में असफल होने पर अथवा झटका खाने पर एवं तेज हवा के प्रतिरोध से आहत होने पर तिलमिलाकर ,लूटखसोट करने के लिए परिवार जन को कलंकित करने अथवा ब्लेकमेल करने की सीमा तक पहुँच जाने की क्रियान्वयन पद्धति (मोड्स आप्ररेंण्डी) का अंतिम शस्त्र के रूप में भी उपयोग उसके द्वारा किया जा सकता है। ऐसे अपराधिक उदाहरणो की भी कमी नहीं है। अत: घरेलु नोकरों के उत्पीडन -प्रताड़ना से संरक्षण के लिए अस्तित्व में लाये गए वैधानिक प्रावधानों के दुरूपयोग की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता है।
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Madhu – 13/07/2012