स्वयं को पूरी
तरह जान लेने से ही व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव है।
प्रत्येक
व्यक्ति में चार प्रकार के रहस्य होते हें।
एक वह जिससे
स्वयं सहित सभी परिचित होते हें।
दूसरा जिसे वह
स्वयं जानता हें, दूसरा
कोई नहीं जानता।
तीसरा वह जिसे और सब जानते हें, पर वह खुद नहीं जानता।
और चौथा वह जिसे कोई भी नहीं जानता।
और चौथा वह जिसे कोई भी नहीं जानता।
जिस रहस्य को सब
जानते हें, उससे
व्यक्तित्व विकास में कोई विशेष फर्क नहीं पढ़ता।
जिसको वह स्वयं
जानता है, उससे दूसरे को कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।
शासकीय सेवाकाल में मप्र शासन द्वारा प्रशासन प्रशिक्षण (Administration) हेतु दिल्ली में प्रशिक्षण को दोरान प्राप्त ज्ञान के अनुसार यह लेख लिखा गया है। ) |
पर उसके जिस तीसरे
रहस्य को और सब जानते हें,
वह स्वयं नहीं जानता,
यदि वह उसको जान पाये तो व्यक्तित्व में परिवर्तन ला सकता है, (जैसे हनुमान अपने रहस्य को जान कर लंका पार कर सके
थे।) प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए, कि वह निरंतर इस खोज में लगा रहे , कि दूसरे उसके बारे में क्या अधिक जानते हें, जो वह नहीं जानता । इससे उसका सर्वांगीण व्यक्तित्व का
विकास होता रहता है। अपनी शक्ति और सामर्थ्य को जान कर ही कोई विशेष बन जाता है।
बाल्यावस्था में
उसकी इस रहस्य शक्ति को माता-पिता और गुरु जानते हें, बाद में उसके मित्र साथी, पत्नी, आदि नजदीकी व्यक्ति ।
ये सब आपको समय समय पर जाने अनजाने आपको सतत इनके प्रति आकर्षित कराते रहते
हें,
यदि हम समझकर लाभ उठाते हें, तो प्रभावशाली बनते चले जाते हें।
पर जो अहंकार वश
में स्वयं को जानना ही नहीं चाहता, वह कूप मंडूक की तरह ही अपना जीवन व्यतीत करता है।
आत्म चिंतन - डॉ
मधु सूदन व्यास
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