दोराहे पर खड़ा है औदीच्य समाज!-
क्या सपने टूट जायेंगे?
अखिल भारतीय औदीच्य महासभा का शुभारंभ आषाढ
क्रष्णपक्ष 10 संवत 1960
सन 1903 में मथुरा में हुआ था। सौ वर्षों के इस इतिहास में लगभग सभी महासभा
अध्यक्षों के कार्यकाल में कुछ न कुछ होता ही रहा है।
1903 से वर्ष 2014 तक महासभा के कई सम्मेलन या बेठकें हुई, पर जो उपलब्धि विगत चार
वर्षों में, (वर्ष २०१० से २०१४ तक) उल्लेखनीय कार्य हुए, एसा पूर्व में कभी नही हुआ
था। वर्ष 2009 से अखिल
भारतीय औदीच्य महासभा के अध्यक्ष पद पर श्री रघुनन्दन जी शर्मा के सर्व सम्मति से
निर्वाचित होने के पश्चात, महासभा जैसे सोते से जग उठी। नए परिवर्तन, विकेन्द्रीकरण के अंतर्गत
प्रादेशिक और जिला इकाइयों का गठन, महिला एवं युवा प्रदेश और
जिला इकाइयो का गठन, अभूतपूर्व सदस्यता अभियान, कई साधारण ओर विशेष सभाओं का केंद्र, प्रादेशिक और
जिला स्तर पर आयोजन कई एतिहासिक निर्णय, गुजरात के औदीच्य
बंधुओं को जोडेने का कार्य, समाज से संबन्धित पुस्तक
श्रीस्थल प्रकाश” का हिन्दी अनुवाद प्रकाशन,आदि, 2013 के अंत तक सम्पन्न हुए। वर्ष 2014 के प्रारम्भ में बहू प्रतिक्षित अखिल भारतीय
औदीच्य महासभा का लंबित और संशोधित पंजीयन का काम
सम्पन्न होना बड़ी उपलब्धि रही है।
सबसे प्रमुख कार्य जिसने समाज को गतिशील बनाया वह था, संगठन का
विकेन्द्रीय-करण। इसके पूर्व तक महासभा अध्यक्ष और कार्यकारिणी आदि सदस्य मिलकर
सारे देश को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास करते रहें हें, इससे संगठन में
मध्यप्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश की सीमाओं को लाँघ कर दिल्ली,उड़ीसा, कर्नाटका,
वेस्ट बंगाल, गुजरात तक से कई औदीच्य बन्धु महासभा के सदस्य बने थे, परन्तु अखिल भारतीय स्वरूप में विस्तार नहीं मिल सका था। श्री रघु जी (श्री रघुनन्दन जी शर्मा) ने इसके कारण पर गौर किया, और शक्ति के विकेन्द्रीय
करण की प्रक्रिया संपन्न की। इसके अंतर्गत मप्र राजस्थान, महाराष्ट्र, की इकाइयाँ
गठित की गईं। प्रदेश इकाइयों ने जिला इकाइयाँ गठित की। महासभा अध्यक्ष ने
विकेंद्रीकरण को और भी विस्तार देते हुए, अखिल भारतीय महिला, और युवा इकाइयों का
गठन किया जिन्होंने अपने प्रदेश में महिला और युवा प्रादेशिक इकाई निर्मित की,
प्रादेशिक इकाइयों ने जिला और तहसील स्तर तक गठन का कार्य आगे बढाया । यह
संगठनात्मक परिवर्तन निरंतर गति शील है| इसमें जिला उज्जैन ग्रामीण , शहर और इंदौर
ग्रामीण ने उल्लेखनीय बडत दर्ज की है। महिला इकाइयों में भी उज्जैन अग्रणी रही है।
अन्य प्रदेशों में महासभा के अखिल भारतीय स्वरूप को बनाने हेतु वे प्रयत्न शील
हैं|
पिछले कई वर्षो से
आजीवन सदस्यता शुल्क रु 20/- रहा था। । पुरानी राशी वर्तमान समय में इतनी कम थी, की नए सदस्य बनाये
जाने के बाद भी संगठन के विस्तार और भावी कार्य के लिए आर्थिक रूप में व्यर्थ
सिद्ध हो रही थी, सर्व सम्मत्ति से आजीवन सदस्यता राशी 200/- निर्धारित की गई,
ताकि समाज का छोटे से छोटे हिस्से को सदस्य बनाने में कठिनाई न हो, पुरानी सदस्यता
को समाप्त नहीं किया जाकर पुराने सदस्यों से पुन नई राशी का सहयोग कर नवीनी करण की
प्रक्रिया बनाई|
पर यह रु 200/- की राशी भी अपर्याप्त प्रतीत होने के कारण रु
2000/- के संरक्षक सदस्य और रु 10,000/-
विशेष संरक्षक सदस्य बनाने का निर्णय लिया गया। सक्रीय और सक्षम जाती बंधुओं से
आवाहन किया गया, देखते ही देखते अखिल भारतीय औदीच्य महासभा
के लगभग 23 से अधिक विशेष संरक्षक सदस्य (रु-10,000), और लगभग 200 संरक्षक सदस्य ( रु-2000/-)
मप्र इसी प्रकार अन्य प्रान्तों में (पूर्ण
आंकड़े आना शेष) बनाये गए। रु 200 के साधारण सदस्यों रु 200/- की संख्या 10,000 से
अधिक हो गई है। यह भी निर्णय लिया गया था की सदस्यता की सम्पूर्ण राशी से जिला
अंश, प्रदेश अंश, काट कर शेष समस्त केंद्र अंश के रूप में जमाकर बेंक में जमा की
जाएगी, और केवल इससे प्राप्त व्याज पर आवश्यक व्यय किया जायेगा। इस प्रकार से आर्थिक व्यवस्था होने के साथ ही
महासभा अपने लक्ष्य की और अग्रसर होने लगी है।
पूर्व में महासभा का संविधान
पंजीयन हेतु दिल्ली भेजा गया था, परन्तु बाद में ध्यान न देने से विस्मृत हो गया
था, जब महासभा के संविधान अनुसार प्रक्रिया लागु करने का विचार आया, तब इस बात पर
ध्यान गया , श्री रघु जी ने व्यक्तिगत प्रयासों से अथक परिश्रम धन, और समय देकर
पुराने कागजो को निकलवाया कार्यालयों में सुप्त पड़े प्रकरण को तलाशने और पुन:
सक्रिय करने में एक वर्ष से अधिक तक अथक प्रयास करना पड़ा। यदि कोई और होता तो थक
कर चुप बेठ गया होता, पर श्री रघु जी ने हार न मान कर लगातार प्रयत्न किये और प्रकरण पुन: जीवित कर दिया। अब संशोधन कर
महासभा सदस्यों की पूर्ण सहमती से पंजीयन हेतु दिल्ली केंद्रीय कार्यालय को
प्रस्तुत किया। जो पंजीकृत होकर हमारे सामने है।
इस संविधान के अनुसार संगठन
पुनर्गठन / निर्वाचन की की प्रक्रिया
प्रारम्भ कर दी गई है, नवगठन दिनांक 11 जनवरी २०१५ को पूर्ण होने की
संभावना है।
श्री रघु जी के पिछले चार वर्षीय कार्यकाल में उपरोक्त यह सब नव गठन
तो हुआ, साथ ही उनके निर्देश पर कई नवीन कार्यक्रम का केलेंडर भी निर्मित हुआ,
गोविन्द माधव जयंती, कार्तिक पूर्णिमा, समस्त देश प्रदेश। के जिलों और तहसील स्तर
तक मना कर औदीच्य समाज ने देश प्रदेश में अपनी
नई छवि दिखाई| इसके अतिरिक्त महिला कार्यक्रम, सामूहिक विवाह, परिचय सम्मलेन, आदि की
और भी समाज जन आकर्षित हुआ और प्रतिस्पर्धा के रूप में भी सामने आया। यह सब समाज
के जाग्रत होने का प्रमाण है। कुछ लोग इसे समाज में विरोधभास भी मानते हें पर एसा
मानना उचित नहीं | हालाँकि कहीं कुछ प्रतिस्पर्धा जन्य कटुता ने वातावरण को ख़राब
जरुर किया है, फिर भी कुल मिलकर यह सब समाज
के ज़ीवंत होने का प्रमाण भी है, जो की
श्री रघु जी के कार्यकाल में ही हुआ।
श्री रघु जी के प्रोत्साहन पर
गुजरात की भी समाज जनों ने कई यात्रायें की अपनी पैत्रिक भूमि के दर्शन कर अभिभूत
तो हुए ही, गुजरात से हिंदी भाषी क्षेत्र के ज़ीवंत संपर्क भी पुनर्जीवित हुआ। इसके
परिपेक्ष्य में औदीच्य ब्राह्मण इतिहास विषयक आदि ग्रन्थ “श्रीस्थल प्रकाश”
का हिंदी भाष्यांतर उज्जैन से प्रकाशित हुआ। उल्लेखनीय है की हिंदी भाषी हमारे क्षेत्र के अतिरिक्त
इसकी सर्वाधिक मांग गुजरात से ही आई है।
शहर जिलों और तहसील स्तर तक
समाज जन गणना का कार्य भी लिया गया देखते ही देखते कई डाईरेक्टोरी का प्रकाशन भी
हो चूका, और निरंतर जारी है।
वर्तमान इल्क्ट्रोनिक इस युग
की आवश्यकता को समझते हुए महासभा के केंद्रीय कार्यालय इंदोर को कम्पूटर इंटरनेट
से सुसज्जित किया गया, और ई मेल अदि संचार माध्यमों के लिए समाज को दिशा मिली, उनके
प्रोत्साहन पर औदीच्य बन्धु डिजिटल, जो अब मोबायल पर भी, प्रतिमाह उपलब्ध हो रही है, औदीच्य बंधू. ओआरजी. काम [http://audichyabandhu.org/] का शुभारम्भ भी किया गया।
कुल मिलकर आज विगत चार वर्षो
में हम सबने, श्री रघु जी के नेतृत्व में महासभा संगठन के लिए वह सब किया जो,
पिछले सो वर्ष में नहीं हो पाया था।
अब जैसी अफवाह है, श्री रघुजी
हम सबके विवादों और महत्वाकंक्षाओं के कारण नेतृत्व से दूर होने का मन बना रहे हें।
सांसद की प्रशासनिक जिम्मेदारी के साथ साथ यदि वे हमको सहज उपलब्ध न हो पाने अथवा
राजनेतिक द्वेष आदि के कारण, हममे से कुछ उनसे रुष्ट हों तो क्या उनका रुष्ट होना
उचित है। मित्रो क्या समाज के लिए उनका
दूर चले जाना हानिकारक नहीं होगा। में समझता हूँ की अभी भी उनके मन में समाज
उन्नति के लिए कई सपने है, उनकी दूरदर्शिता, लगन और कार्य क्षमता जैसा व्यक्ति वर्तमान
में दिखाई नहीं दे रहा है। उनके नेतृत्व में हममे से कई भविष्य नेतृत्व कर पाने की
क्षमता अर्जित कर सकते हें। आज फिर से औदीच्य समाज दोराहे पर खड़ा है, या तो इसी
प्रकार नई राह खोजेगा या विगत शेष सो वर्षो की तरह, पुन रेंगता रहेगा, और क्या
सपने टूट जायेंगे?
निवेदन है, की मेरी इस बात पर सभी गोर करें और
भविष्य का ताना बना बुने।
अस्तु,
जय गोविन्द माधव
डॉ मधु सूदन व्यास ।
08/12/20 14
०९४२५३७९१०२
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