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देवभूमि उत्तराखण्ड जहां हरिव्दार, ऋषिकेश, बद्री, केदार, गंगोत्री, जमनोत्री जैसे अनेकानेक पवित्र तीर्थस्थल होकर जब वहां तक जाने के लिए यातायात के कोई भी साधन उपलब्ध न होकर पैदल यात्रा करना पडती थी, तब से आज तक प्रतिवर्ष लाखों धर्मालुजन अपनी धार्मिक यात्रा निर्विध्न रूप से सम्पन्न करते आ रहे है। आज तक इतनी भयावह और खौफनाक त्रासदी नहीं हुई जो वर्ष 2013 को 16 जून की रात्रि में विकराल और रौद्ररूप में आकर वैज्ञानिकों, ज्योतिषियों, शासकों और मानव श्रंखला के लिए चिन्तन मनन के कई प्रश्न छोड कर उनके उत्तर ढूंढ कर उन पर अमल करने का भार छोड गई। 
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जो नष्ट हो गया उसका मूल रूप में तो अब आना संभव नहीं है, किन्तु नये सिरे से नये अंकुरण का कार्य तीव्र गति से करना होगा। सबसे पहले उन शैतानी दिमागों को जो ऐसे भयावह वातावरण को बनाने के जिम्मेदार है, को उन दुखी परिवारों की चित्कारों से रूबरू कराना, जिन्होने अपना सब कुछ खो दिया, उन्हे उप स्थानों पर ले जाना जो पहले चहल पहल से लबरेज रहते थे, आज विरान, भूतहा बन कर सांय-सांय की आवाज कर रहे हैं। क्रोधित नदियों के उस जल में डुबा कर निकालना, जिनमें कई अज्ञात अनजान लोग जल मग्न हो गये ताकि उनका निष्ठुर ह़दय अपने पापों का प्रायश्चित कर सके। और भविष्य में देवता समान जल अग्नि वायु प़थ्वी की सुरक्षा कर नये विचारों को अंजाम दे सके।
इस अवसर पर जल, थल, और नभ सेना के उन जांबाज सैनिकों अधिकारियों की प्रशंसा करते हुए सलाम करना ह़दयग्राही होगा, जिन्होंने अचानक आई प्राक्रतिक विपदा के समय धैर्य और साहस के साथ हजारों लोगों के जीवन की सुरक्षा करते हुए उन्हे अनके अपनों के पास तक पहुंचाया। वे संस्थायें और स्थानीय निवासी भी स्मरण एवं प्रशंसा के योग्य है, जिन्होने ऐसे विकट समय में मानवीय सहायता करने का सर्वोपरी लक्ष रखा।
आईए अब हम उन अज्ञात आत्माओं को हार्दिक श्रध्दांजली अर्पित करें, जो प्रक्रति के प्रकोप का शिकार होकर असमय ही काल के गाल में समाकर ईश्वरीय शक्ति में विलीन हो गई और उन शैतानी ताकतों को धिक्कारें जिन्होने ऐसे भयावह वातावरण को निर्मित करने में अपनी अमानवीय भूमिका निभाई।
ओम् शान्ति: शान्ति:।
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