सनातन धर्म जो हिन्दू संस्कृति के रिश्तों और जीवन मूल्यों के प्रति विश्वास, समर्पण व सम्मान की भावना बनाए रखने वाले वैदिक सूत्रों और पोरणिक पात्रों के महान आदर्शों का भंडार हे। इसका एक अमूल्य उपहार है, आज का[22 जुलाई 2013] पर्व - गुरु पूर्णिमा।
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गुरु जैसा होगा शिष्य भी वैसा ही भविष्य बनेगा। अपरिपक्व बुद्धि ओर आयु अनुभव के युवक युवतियों को गुरु चयन के लिए दिशा निर्देश देना अनुभवी माता-पिता ओर वुजुर्गों का उत्तर दायित्व होता है।
भौतिक सुखों से भरे आज के माहौल में कई लोग अंदर और बाहरी संघर्ष, अंतर-द्वंद्व से परेशान होकर सुख के लिये आँय हर आयु का व्यक्ति अच्छे गुरु की तलाश में रहता है, मानसिक तनाव और व्यावहारिक कठिनाइयों श्रेष्ठ गुरु मिलना कठिन रहता है। इस अवस्था में जब, जैसे, जहां, जो भी, सहारा मिलता है, उसे वह एक वेल की तरह लिपट कर, गुरु मनाने लगता है, ओर वह उसी की तरह मीठा या कड़वा हो सकता है।
अत: यह जरूरी है, कि हम जैसे बनाना चाहते हें वैसे गुरु को पाने का प्रयत्न करें। दुर्भाग्यवश यदि बाद में यह ज्ञात हो जाए की गुरु विष-व्रक्ष है, तो उसे जीवन से हटाने मेँ तनिक भी देर न करें। हमारे जीवन में शिक्षक तो कई आ सकते हें, जो केवल अपने एक विषय के ज्ञाता हो सकते हें। पर वे जो सर्व ज्ञान सम्पन्न हो ओर जीवन के हर क्षेत्र मेँ हर कठिनाई पर मार्ग प्रशस्त करने वाला गुरु नहीं हो सकते।
हमारी भारतीय सांसक्रतिक विरासत ने "वशिष्ठ" "विश्वामित्र" जैसे गुरु जिन्होने अनेक ग्रथों/ उपदेशो/ ओर वेद सहित अनेक साहित्य सामग्री दे कर जो ज्ञान दिया हे, वही ज्ञान वर्तमान शिक्षक ओर गुरु देते रहें हें, इसीकारण ब्राह्मण सहित सभी उनका आव्हान कर किसी भी कर्म को करते हें। गुरु पूजन में भी हम उनका आव्हान कर हमारे सम्मुख बैठे प्रत्यक्ष गुरु जिनने उनका ज्ञान समझने की शक्ती प्रदान की है, का पूजन कर गुरु पूर्णिमा मनानी चाहिए।
डॉ मधु सूदन व्यास
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इसका प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा है,सभी बंधुओं से सुझाव/सहायता की अपेक्षा है।