त्यौहार एवं व्रत का उद्देश्य- वर्तमान परिपेक्ष्य में|
हमारे
देश में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक बिना लिंग भेद के, उत्सव-
त्योहार का आगमन जन मानस को बड़े
ही आनंद और उल्लास से भर देता है, जितना बड़ा त्यौहार उतना
बड़ा आनंद का अवसर होता है|
यूँ तो वर्ष भर प्रतिदिन कोई न कोई व्रत और त्योहार सनातन धर्म में
सम्मलित है| पूर्व काल से ही, वर्षाकाल में अनेक प्राकृतिक समस्यायें विशेषकर आवागमन की, कृषि कार्य भी लगभग कम
हो जाता है, इसके चलते अधिकांश व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं के पास खाली समय अधिक रहता था|
यह
प्रमाणित है कि "खाली दिमाग शैतान का
घर".
इसलिए जैसा की कहा जाता है की "व्यस्त रहो मस्त रहो"|
जब व्यस्तता नहीं होगी तब अनावश्यक विचार मष्तिष्क (खुराफातें) में उत्पन्न होंगी जिससे अनावश्यक संकट, विरोध आदि होने लगेंगें| अतः एक प्रकार से त्योहार व्यस्त रखने के एक प्रबल रास्ता रहा है|
हालांकि वर्तमान में साधन अच्छे होने, और पुरुषों के पास कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करने से व्यस्तता निरंतर बनी रहती है, फिर भी वर्तमान में विशेषकर अधिकांश महिलाओं के पास तुलनात्मक अधिक समय होता है |
इसलिए जैसा की कहा जाता है की "व्यस्त रहो मस्त रहो"|
जब व्यस्तता नहीं होगी तब अनावश्यक विचार मष्तिष्क (खुराफातें) में उत्पन्न होंगी जिससे अनावश्यक संकट, विरोध आदि होने लगेंगें| अतः एक प्रकार से त्योहार व्यस्त रखने के एक प्रबल रास्ता रहा है|
हालांकि वर्तमान में साधन अच्छे होने, और पुरुषों के पास कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करने से व्यस्तता निरंतर बनी रहती है, फिर भी वर्तमान में विशेषकर अधिकांश महिलाओं के पास तुलनात्मक अधिक समय होता है |
भारतीय
सस्कृति में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति
के लिए विविध प्रयास किए जाते
हैं | इन लक्ष्य को प्राप्त
करने के लिए पुरुषों और महिलाओं द्वारा अनेक व्रत, उपवास
किया जाता है, इसके लिये विशेष कर चतुर्मास सबसे सुगम समय सिद्ध होता है|
सांस्कृतिक
व्यवस्था के अनुसार इसीलिए इन दिनों अनेक व्रत
एवं त्यौहार का सिलसिला प्रारभ्म
हो जाता हैं| सनातन धर्म संस्कृति में पुराण,
उपनिषद आदि, आदि धर्म ग्रंथों के माध्यम से
अनेक कथा- कहानियां सम्मलित कर दी गई है, जो इन व्रत और त्योहार पर प्रेरणा प्रदान कर लोक शिक्षण का
महत उद्देश्य पूरा करती है, जिनके माध्यम से समाज, परिवार,
विशेषकर भावी पीढ़ी को संस्कार और ज्ञान मिलता है, साथ ही मानसिक संशोधन भी हो जाता है|
कई
बार इन कथा कहानी द्वारा अंधविश्वास बडाने वाले आरोप भी लगाये जाते हैं, वास्तव में इसमें दोष धर्म ग्रंथो का नहीं है, इस प्रकार
की कहाननियॉ बाद में जोडी गई हैं ।
व्रत
और त्यौहार मना कर हम शिक्षण के साथ जाने अनजाने पहिला सुख स्वास्थ्य
लाभ भी प्राप्त कर लेते है |
जैसा
कि कहा गया है, पहला सुख निरोगी काया ||
वर्षाऋतु
में जठराग्नि मंद हो जाती है, गतिविधियां, आहार विहार जीवन चर्या प्रभावित होती है,
ऐसे में व्रत त्यौहार के माध्यम से संयम
करने पर शारिरिक संशोधन हो स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है|
लगभग प्रत्येक त्यौहार अथवा व्रत आदि के समय
विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाने की परंपरा है, गडगौर पर गुना गठुरे, होलो दिवाली गुजिया, गणेश चतुर्थी ओर मकर संक्रांति
पर, विभिन्न प्रकार के लड्डु, आदि आदि क्षेत्र्
विशेष अनुसार सूची बडी हो सकती है। इस समय सभी को, विशेषकर बालको को, इन व्यंजनो की प्रतिक्षा रहती है, इससे वे भी उस उत्सव में समर्पण और आकर्षण से सम्मलित होते है| इन उन विशेष व्यंजनों के माध्यम से उस ऋतू -काल में विशेष पोषक तत्व उन
विशेष निर्देशित आहार द्वारा मिलते रहते हैं, इससे महिलाओं
बच्चों में कुपोषण, आदि की समस्या
ऐसे परिवारों में कभी नहीं होती रही है|
कहा
जाता है कि, पर्व त्योहारौ पर अधिकांश तह, महिलाऐं ही व्रत,
उपवास अधिक क्यों करती हैं ?
इसका
उत्तर यही है कि महिलाएँ अधिक उत्सव प्रिय,
और अधिकांशत: घर में रहने से अधिक समय दे सकती है, ओर पुरुषौ की तुलना में शारीरिक परिश्रम कम कर पाती हैं, इसके अतिरिक्त उन पर बच्चों को प्रारंभिक संस्कार/शिक्षा देने वाली की जिम्मेदारी
भी होती है, अत: उनका शिक्षण इस माध्यम से अनायास हो जाता है|
वर्तमान समय में, व्रत और त्यौहार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। आज
हमारे बच्चो को सांस्कृतिक विचार स्कूलों में नहीं मिल पा रहे हैं| आहार के नाम पर हर जगह फ़ास्ट फ़ूड का चलन बाद
गया है, विरासत वाले त्यौहार विशेष पोषक आहार का लाभ खो रहें
है जिससे मोटापा, आदि आदि जीवन में प्रवेश कर रहा है,
हर त्यौहार पर किये जाने वाले व्रत,
उपवास से शारीरिक संशोधन नहीं कर रहे हैं|
पर्व
उत्सवों की कथा-कहानी हम भूलते जा रहे हैं, इससे
उनसे मिलने वाले संस्कार,
ज्ञान, को भूल कर धर्म, दान, त्याग आदि विचारो से विमुख होकर मानसिक पिछड़ापन
अंगीकार कर रहे हैं|
यदि
हम वर्तमान आवश्यकता के अनुसार जीवन जीने के लिए आधुनिक शिक्षा के साथ यदि अपनी पीढ़ी को सांस्कृतिक ज्ञान, संतुलित आहार, नियमित जीवन भी देते रहें, जो इन पर्व त्योहारौ के माध्यम से अनायास बिना किसी विशेष प्रयत्न के आनन्द
ओर् उल्लास के साथ मिल जाये तो अपने परिवार के साथ सारे समाज का कल्याण भी होगा|
इस
प्रकार से वर्तमान परिपेक्ष्य में त्यौहार एवं
व्रत का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा।
अस्तु।
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श्रीमती कल्पना व्यास
M.A. [संस्कृत एवम अर्थ शास्त्र]
M.Phil [संस्कृत]
Ph D (संस्कृत Runing)
समाज हित में प्रकाशित।आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल आदि, जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर